ऊना : Saint Sugrivananda Maharaj is no more… डेरा बाबा रुद्रानन्द के संस्थापक वेदांताचार्य 1008 स्वामी श्री श्री सुग्रीवानन्द महाराज जी ने 92 वर्ष की आयु में पीजीआई चंडीगढ़ में अपना शरीर त्याग दिया। वे पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे और चिकित्सकों की देखरेख में उपचाराधीन थे। उनके निधन से संपूर्ण डेरा परिवार और अनुयायियों में शोक की लहर दौड़ गई है। स्वामी सुग्रीवानन्द महाराज जी एक महान संत, आध्यात्मिक गुरु और समाजसेवी थे। उन्होंने अपने जीवन को सेवा, साधना और मानव कल्याण के कार्यों में समर्पित कर दिया। महाराज के पार्थिव शरीर को आज 12 बजे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जाएगी।

Saint Sugrivananda Maharaj is no more… विद्या भारती पंजाब के संगठन मंत्री राजेंद्र,उत्तर क्षेत्र संगठन मंत्री विजय नड्डा ,राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के उत्तर क्षेत्र के सह संपर्क प्रमुख जसबीर ने शोक प्रकट किया है। डेरा बाबा रुद्रानन्द सेवक मण्डल जालंधर के सेवादार सतपाल ,संजीव मिंटू ;स्टेशन बाजार जालंधर के प्रधान दीपक नय्यर ,पंजाब भाजपा के महामंत्री राकेश राठौर ,पूर्व केंद्रीय मंत्री और हमीरपुर सांसद अनुराग ठाकुर ,केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा ,बिलासपुर से भाजपा विधायक त्रिलोक जामवाल ,पूर्व मेयर जालंधर जगदीश राजा ने अपना दु:ख प्रकट किया है। 5 नवंबर 1928 को ऊना जिला के गुगलैहड़ में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे बालक को उस समय क्या पता था कि वह सनातन परंपरा को बुलंदियों तक पहुंचाएगा।

Plugin developed by ProSEOBlogger

Also Read

बचपन का नाम कर्म चंद था। उस समय आश्रम डेरा बाबा रुद्रानंद में बाबा आत्मानंद महाराज डेरा के महंंत थे। उन्होंने आश्रम में एक संस्कृत पाठशाला चला रखी थी। कर्मचंद के माता-पिता ने भी 6 वर्ष की आयु में बालक को आश्रम में आत्मानंद महाराज के पास छोड़ दिया। जहां पर इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत में हासिल की। बचपन से ही आत्मानंद ने देखा कि यह बालक भक्ति भाव में रमा रहता है। शुरू से ही उनकी नजर इस बालक पर थी।

धीरे-धीरे बालक ने आश्रम में ही शिक्षा ग्रहण की तथा महाराज आत्मानंद को अपना गुरु धारण कर लिया। गुरु दीक्षा लेने के बाद गुरु के साथ बैठकर तपस्या करना और अन्य कर्मकांड सीख लिए। महाराज आत्मानंद ने 20 वर्ष तक इनकी कठोर परीक्षा ली। तब जाकर उन्हें गद्दी का उत्तराधिकारी बनने के योग्य समझा और 1952 में मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा तिथि को कर्म चंद को 26 वर्ष की आयु में गद्दी पर बिठाया और इनका नाम सुग्रीवानंद रखा।

Leave a Comment

Website Powered by Hostinger.